उत्तराखंड में पिरूल से कम्प्रेस्ड बायो गैस उत्पादन की तैयारी
राज्य में चार लाख हेक्टेयर में फैले हैं चीड़ के जंगल
देहरादून। 71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड के चार लाख हेक्टेयर में फैले चीड वनो से निकलने पिरूल यानी चीड़ की पत्तियां आने वाले दिनों में आय का बड़ा संसाधन बन सकती हैं। साथ ही पिरूल जंगलों में आग के फैलाव का कारण भी नहीं बनेंगी। इसी कड़ी में पिरूल से सीबीजी (कम्प्रेस्ड बायो गैस) बनाने की तैयारी है। चीड़ की पत्तियों (पिरूल) से सीबीजी उत्पादन की संभावनाओं पर गम्भीरता से कार्य करने के प्ररिपेक्ष्य में मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने सचिवालय में इण्डियन ऑयल के अलावा ऊर्जा, ग्राम्य विकास, पंचायती राज एवं वन आदि सम्बन्धित विभागों के अधिकारियों के साथ हुई बैठक एक कमेटी गठित करने के निर्देश दिए है।
मुख्य सचिव ने इण्डियन ऑयल को राज्य में पिरूल को सीबीजी उत्पादन में फीड स्टाॅक के रूप में प्रयोग करने, जैविक खाद तथा ग्रीन हाइड्रोजन के रूप उपयोगिता की संभावनाओं पर अध्ययन कर रिपोर्ट शासन को भेजने के लिए कहा। उन्होंने इण्डियन ऑयल को इस सम्बन्ध में अपनी एक आन्तरिक कमेटी गठित कर डिटेल फिजीबिलिटी रिपोर्ट शासन को जल्द देने के लिए कहा है। उन्होंने इस सम्बन्ध में प्रोजेक्ट को संचालित करने हेतु गढ़वाल तथा कुमाऊं में संभावित एक-एक स्थान की पहचान करने के निर्देश दिए हैं।
इण्डियन ऑयल के अनुसार उत्तराखण्ड में पिरूल की कुल उपलब्धता में से लगभग 40 प्रतिशत कलेक्शन की संभावनाओं के बाद 60000-80000 टन प्रतिवर्ष सीबीजी उत्पादन की उम्मीद की जा सकती है। राज्य में पिरूल का प्रतिवर्ष 1.3 से 2.4 एमएमटी सकल उपलब्धता है। चीड़ के जंगल राज्य में 400000 हेक्टेयर पर फैले हुए हैं। यहां प्रति हेक्टेयर 2-3 टन पिरूल उपलब्ध है।
मुख्य सचिव ने इस प्रोजेक्ट पर इण्डियन ऑयल के साथ वन विभाग, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग को सक्रियता से कार्य करने के निर्देश दिए। बैठक में प्रमुख सचिव आर के सुधांशु, सचिव आर मीनाक्षी सुन्दरम, दिलीप जावलकर सहित वन, नियोजन, वित्त, ऊर्जा विभाग तथा इण्डियन ऑयल के अधिकारी मौजूद रहे।